Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare...
Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare.........................

Friday, July 20, 2012

मिलन : कान्हा के नाम चिट्ठी: चंद्रानी (पिंकी )


कान्हा, मो से मिलन को आयों,
सावन पंचमी की रात .
मनोहर मूरत , सावली सूरत,
मिटा गयों  संताप . 
 हिव्ड़े से लिपट लिपट कर ,
बोल्या मीठी वाणी  .
छल छल  नीर बहें नैनन से,
रोक्या  डगर  म्हारी .
अबहू  दरद कोई  तन से न लाग्ये,
मिट गयों  भय अरु त्रास. 
चांदन से धुल रही रैना ,
बुझी नैनन की प्यास . 

श्यामरंग, रंग गयी मैं  तो ,
जग से मोहे क्या काज.
अब काहूँ का ध्यान  धरूँ,
जो मिल गयें महाराज .



अनमोल खजाना :किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत: सूरदासजी

 
 किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत ।
मनिमय कनक नंद कै आँगन, बिंब पकरिबैं धावत ॥

कबहुँ निरखि हरि आपु छाहँ कौं, कर सौं पकरन चाहत ।
किलकि हँसत राजत द्वै दतियाँ, पुनि-पुनि तिहिं अवगाहत ॥
कनक-भूमि पद कर-पग-छाया, यह उपमा इक राजति ।
करि-करि प्रतिपद प्रति मनि बसुधा, कमल बैठकी साजति ॥
बाल-दसा-सुख निरखि जसोदा, पुनि-पुनि नंद बुलावति ।
अँचरा तर लै ढाँकि, सूर के प्रभु कौं दूध पियावति ॥

भावार्थ :-- कन्हाई किलकारी मारता घुटनों चलता आ रहा है । श्रीनन्द जी के मणिमय आँगन में वह अपना प्रतिबिम्ब पकड़ने दौड़ रहा है । श्याम कभी अपने प्रतिबिम्ब को देखकर उसे हाथ से पकड़ना चाहता है । किलकारी मारकर हँसते समय उसकी दोनों दँतुलियाँ बहुत शोभा देती हैं, वह बार-बार उसी(प्रतिबिम्ब) को पकड़ना चाहता है । स्वर्णभूमि पर हाथ और चरणों की छाया ऐसी पड़ती है कि यह एक उपमा (उसके लिये) शोभा देनेवाली है कि मानो पृथ्वी (मोहन के) प्रत्येक पद पर प्रत्येक मणि में कमल प्रकट करके उसके लिये (बैठने को) आसन सजाती है । बालविनोद के आनन्द को देखकर माता यशोदा बार-बार श्रीनन्द जी को वहाँ (वह आनन्द देखने के लिये)बुलाती हैं । सूरदास के स्वामी को (मैया) अञ्चल के नीचे लेकर ढक कर दूध पिलाती हैं ।

Saturday, July 7, 2012




कित गया मोरा गोपाल कृष्ण ,
ढूँढ रही माँ योशोदा .
कित गया मोरा नंदलाला,
पूँछ रही माँ यशोदा.
दही की मटकी, माखन की मटकी,
तोड़े फोड़े, ग्यालिनो की बस्ती .
माखन चुराने में जिसकी मस्ती .
वह चोर छुप गया कहाँ .
कित गया मोरा गोपाल कृष्ण ,
ढूँढ रही माँ योशोदा .
डोर से बाँधे, बंधन रहे ना,
डोर नही जैसे फुलों का गहना .
उस अबिनाशी को बांध सके ना,
जो ना वह स्वयम बंधने आये .
कित गया मोरा गोपाल कृष्ण ,
हाथ में ब्रह्माण्ड लड्डू ,
यमुना पायल भयी चरणों में .
सोचे मैया बालक भेश में ,
कौन जादूगर खेले हाय .
कित गया मोरा गोपाल कृष्ण ,
ढूँढ रही माँ योशोदा .
कित गया मोरा नंदलाला,
पूँछ रही माँ यशोदा.

Thursday, July 5, 2012

कान्हा के नाम चिठ्ठी: चंद्रानी (पिंकी)

कान्हा तुम्हारे नाम की चिट्टी लिखने पर ,मेरे मन को एक अजीब सी शांति मिलती हैं. तुम्हे पता हैं, दिन रात सोचती हूँ , तुम पर सब कुछ न्योछावर कर दू. जानती हूँ की  कहना आसान हैं, करना मुस्किल, पर तुम चाहो तो नामुमकिन भी मुमकिन हो जायें...प्रेम में बड़ी शक्ति होती हैं... आज उसी प्रेम की एक कहानी को , तकनिकी सहायता  थोड़ा सजाने-सवारने  की कौसिश करते  हुए , तुम्हारे चरणों में अर्पण करती हूँ.. 

अनमोल खजाना : मीराबाई : मीरा मगन भई हरि के गुण गाय

मीरा मगन भई हरि के गुण गाय॥
सांप पिटारा राणा भेज्या, मीरा हाथ दिया जाय।
न्हाय धोय जब देखन लागी, सालिगराम गई पाय॥
जहरका प्याला राणा भेज्या, इम्रत दिया बनाय।
न्हाय धोय जब पीवन लागी, हो गई अमर अंचाय॥
सूली सेज राणा ने भेजी, दीज्यो मीरा सुवाय।
सांझ भई मीरा सोवण लागी, मानो फूल बिछाय॥
मीरा के प्रभु सदा सहाई, राखे बिघन हटाय।
भजन भाव में मस्त डोलती, गिरधर पर बलि जाय॥

Sunday, July 1, 2012

अनमोल खजाना : सूरदास जी : भावी काहू सौं न टरै।

 

आनि सँजोग परै , भावी काहू सौं न टरै।
कहँ वह राहु, कहाँ वे रबि-ससि, आनि सँजोग परै॥
मुनि वसिष्ट पंडित अति ज्ञानी, रचि-पचि लगन धरै।
तात-मरन, सिय हरन, राम बन बपु धरि बिपति भरै॥
रावन जीति कोटि तैंतीसा, त्रिभुवन-राज करै।
मृत्युहि बाँधि कूप मैं राखै, भावी बस सो मरै॥
अरजुन के हरि हुते सारथी, सोऊ बन निकरै।
द्रुपद-सुता कौ राजसभा,दुस्सासन चीर हरै॥
हरीचंद-सौ को जग दाता, सो घर नीच भरै।
जो गृह छाँडि़ देस बहु धावै, तऊ वह संग फिरै॥
भावी कैं बस तीन लोक हैं, सुर नर देह धरै।
सूरदास प्रभु रची सु हैहै, को करि सोच मरै॥