Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare...
Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare.........................

Wednesday, May 23, 2012

अनमोल खजाना -मीरा भजन- बिना प्रभु कुण बांचे पाती




कुण बांचे पाती, बिना प्रभु कुण बांचे पाती।
कागद ले ऊधोजी आयो, कहां रह्या साथी।
आवत जावत पांव घिस्या रे (वाला) अंखिया भई राती॥
कागद ले राधा वांचण बैठी, (वाला) भर आई छाती।
नैण नीरज में अम्ब बहे रे (बाला) गंगा बहि जाती॥
पाना ज्यूं पीली पड़ी रे (वाला) धान नहीं खाती।
हरि बिन जिवणो यूं जलै रे (वाला) ज्यूं दीपक संग बाती॥
मने भरोसो रामको रे (वाला) डूब तिर्‌यो हाथी।
दासि मीरा लाल गिरधर, सांकडारो साथी॥ 

शब्दार्थ :- कुण =कौन। पाती = चिट्ठी। साथी =सखा, श्रीकृष्ण से आशय है। घिस्या = घिस गये। राती = रोते-रोते लाल हो गई। अम्ब = पानी। म्हने =मुझे सांकडारो =संकट में अपने भक्तों का सहायक।

Wednesday, May 9, 2012

कान्हा के नाम चिठ्ठी- चंद्रानी पुरकायस्थ






चल ले चल मोहे उस पार,
तुझ  में ही मेरो संसार .
तू पार लगा, मेरी नाव फसी,
खिवैयाँ  मेरे मोहन श्रीहरी .
तोरे बिन अब रहा न जाएँ ,
पल भर को चैन न आयें.
तोरे चरणों से लिपटी रहूँ,
पायल बन छन  छन छनकती रहूँ .
माधब अब तो दरस दिखादे
जन्मों की प्यास बुझादे  .

Monday, May 7, 2012

कान्हा के नाम चिठ्ठी - तेरा प्रेम -चंद्रानी पुरकायस्थ (पिंकी)

 मैं अकेली थी , अकेली हूँ  और सायद अकेली ही रहूंगी।
भीड़ में भी अकेली ।।
हर अपना, अपने होने का एहसास दिला कर खो जाता है. 
मैं सुनी गलियारे में झांकती , सोचती कोई किसी का अपना होकर भी ,
अपना नही ???
तभी तू  कानों  में मेरे हलके से कह जाता ,
हर पल , हर कदम  मैं साथ हूँ तेरे ।
मैं मोर पंख से छन  छन आती किरणों में ,
ढूंढ़ लेती  तुझे।
तू अपनी आँखों कि भाषा से 
हर बात कह जाता ।
मैं अँधेरे से डर जाती ,
तू बाति लेकर राह दिखाता.
हाँ , पता हैं मुझे ,
हर  पल तू साथ था, साथ है, साथ रहेगा।
प्रेम क्या है तुने ही तो सिखलाया ,
मैं संसार भर प्रेम  ढूँढती रही।
और तू प्रेम की धार बन ,
मन में ही बहता हुआ  नजर आया।