प्रीत रंग मोहे ऐसन लागी,छोड़े न छुटी जाय.
बदरी देखूं सावन गगन में, तोरे बिरह में जिया अकुलाय .
हमका छोड़ गयों निर्मोही ,त्याग गयों निज गाँव.
कंसारी नाम मथुरा बसत हैं ,कित गयो हमरो श्याम.
कित छोड़ी मोहन मुरली ,माखन मिश्री भोग ,
कृष्ण मुरारी लौट आ , तडपाये बिरह का रोग .
राधा राधा न पुकारे बंशी ,यमुना तट सुनसान.
दरश को तेरे तडपत अँखियाँ ,कैसे सम्भालूँ रे प्राण.
सुख धन स्वर्ग का मोह हमे ना , नाहि कलंक का भय ताप.
तेरो साथ मिले जो कान्हा , मिटे जनमों का संताप .
माधब मनोहर कृष्ण मुरारी, तुहूँ मम प्रानक प्राण .
तेरो चरण स्पर्श से कान्हा कांटा कमल समान.