Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare...
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Thursday, September 22, 2011

कान्हा के नाम चिट्ठी -कृष्ण मुरारी लौट आ- चंद्रानी पुरकायस्थ



प्रीत रंग मोहे ऐसन लागी,छोड़े न छुटी जाय.
बदरी देखूं सावन गगन में, तोरे  बिरह में जिया अकुलाय .
हमका छोड़ गयों निर्मोही ,त्याग गयों निज  गाँव.
कंसारी नाम मथुरा बसत हैं ,कित गयो हमरो श्याम.
कित छोड़ी मोहन मुरली ,माखन मिश्री भोग  ,
कृष्ण मुरारी लौट आ , तडपाये  बिरह का  रोग .
राधा राधा न पुकारे बंशी ,यमुना तट सुनसान.
दरश को तेरे तडपत अँखियाँ ,कैसे सम्भालूँ रे  प्राण.
सुख धन स्वर्ग का मोह हमे ना  , नाहि कलंक का भय ताप.
तेरो साथ मिले जो  कान्हा , मिटे  जनमों का संताप .  
माधब मनोहर कृष्ण मुरारी, तुहूँ मम प्रानक प्राण .
तेरो चरण स्पर्श से कान्हा  कांटा कमल समान.

Sunday, September 11, 2011

कान्हा के नाम चिट्ठी - तुम बिन कौन सहारा -पिंकी पुरकायस्थ




तेज भयो  अँधियारा ,
बिजली नाचत , सावन गगन में,

काँपत  हिय नन्दलाला .
तुम बिन कौन सहारा .

राह  चुनू जो  तुम तक जाये,
तुम बिन  कछु  न सुहाए ,
लोभ मोह से धुंदला अंतर 
राह भुलाता जाये ,

कैसे आऊँ दर तक तेरे   ,
तू जो न हो राह दिखाने वाला ,
तुम बिन कौन सहारा .

आकर थामो कलैया मेरी ,
 माधब  मन मोहना .
तुम बिन कौन सहारा .